शिवपुरी-हिंदू मठ मंदिरों व विद्या का केंद्र था सुरवाया, गढ़ी, युगल किशोर शर्मा पत्रकार की खास रिपोर्ट ।
शिवपुरी, से झाँसी की ओर 18,किलोमीटर दूर राष्ट्रीय राज्य मार्ग पर स्थित सुरवाया एक प्राचीन स्थल है जिस का प्राचीन नाम सरस्वती पत्तन और शंखमटिका मिलता है,यहाँ भ्रमण का अवसर प्राप्त हुआ तो ज्ञात हुआ कि सुरवाया से प्राप्त अभिलेख में इसे सरस्वती पत्तन जबकि रन्नोद नामक स्थल से प्राप्त 10वीं 11वीं शताब्दी के एक अभिलेख में इस स्थल के लिए शंखमठिका शब्द का प्रयोग किया गया है रन्नौद से प्राप्त अभिलेख के अनुसार शंखमठिकाधिपति शंख मठिका का स्वामी कदंब गुहावासी शैव पंथ मत्तमयूर के मार्गदर्शक एवं प्रथम आचार्य थे। तथा इन्होंने ही इस संप्रदाय से संबंधित गुरु शिष्य परंपरा की शुरुआत की थी इस पंथ से संबंधित के लिए 11 वीं 12 वीं शताब्दी में इस मठ का निर्माण किया गया था सुरवाया में एक मध्यकालीन काल का दुर्ग है इस दुर्ग की संरचना गढ़ी के आकार की होने के कारण स्थानीय रूप से इसे गढ़ी नाम दिया जाता है। गढ़ी में प्रवेश के लिए तिरछे रास्तों से होते हुए तीन प्रवेश द्वार हैं यह गढ़ी दीवार तथा खाई से गिरी हुई है इस के अंदर तीन मंदिर तथा 1 मठ है यह मठ आकार में एक बड़ी एवं महत्वपूर्ण संरचना है क्योंकि मध्यकालीन हिंदू मठों के उदाहरण तत्कालीन समय में बहुत ही दुर्लभ हैं इस भवन का निर्माण पत्थरों व चूना की ठोस चिनाई से किया गया है इसमें एक खुला आंगन है जो स्तंभ युक्त गलियारों और हॉल से घिरा हुआ है यह मठ मूल रूप से दो मंजिला इमारत थी हालांकि इसकी ऊपरी मंजिल अब केवल कुछ जगहों पर ही बची है गढ़ी के तीनों मंदिर 10 वीं शताब्दी की कच्छपघात शैली की उत्कृष्ट कलाकृति है ,इन मंदिरों के प्रवेश द्वार पर पुष्प अलंकरण व भगवान गणेश जी की प्रतिमा स्थापित हैं तथा मंदिरों की चारों दीवारों पर हिंदू देवी देवताओं की प्रतिमाएं सुशोभित हैं पत्थरों पर उत्कृष्ट कला की कलाकृतियां अभी भी स्पष्ट रूप से देखी जा सकती हैं तीनों मंदिरों के शिखर वर्तमान में टूट चुके हैं। मंदिर क्रमांक 3 के सामने एक आयताकार बावड़ी है जोकि गढ़े हुए पत्थरों से बनी है बावड़ी के अंदर नीचे तक जाने के लिए कई सीढ़ियां लगी हुई हैं बावड़ी की दीवार में एक स्थान पर भगवान विष्णु शेषशैया पर विराजमान हैं व माता लक्ष्मी उनके चरण कमल दवा रही हैं ।मठ के मध्य भाग में एक विशाल सभागार निर्मित है जहां पर बैठकर श्रेष्ठ संत महंत व उनके शिष्य वेदों का अध्ययन व अध्यापन किया करते थे वहीं इस के मध्य भाग में शास्त्रार्थ के लिए बाहर से आए हुए विद्वानों व जिज्ञासुओं को उनकी जिज्ञासा समाधान के लिए उचित बैठने व शास्त्रार्थ की भी व्यवस्था थी। मंदिरों के चारों ओर खुदाई में मिले अवशेषों से ज्ञात होता है कि इन स्थानों पर शिष्यों व गुरुजनों को ठहरने के लिए आवासों का निर्माण था जिनके अब सिर्फ भग्नावशेष ही हैं कुल मिलाकर निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि सुरवाया गढ़ी केवल एक प्राचीन गढ़ी ना होकर हिन्दू मठ मंदिरों व सरस्वती के ज्ञान का श्रेष्ठ केंद्र था। राजेंद्र गुप्ता पत्रकार मो, नं,8435495303