सब कुछ होते हुए भी सिविल अस्पताल में अव्यवस्थाओ का आलम
रिपोर्ट/------- घनश्याम बाबा ब्यूरो चीफ
डबरा। लोक परिवार एवं कल्याण विभाग शासकीय अस्पतालों में इतना बजट भेजते है कि शासकीय अस्पतालों में आने वाले मरीजों को किसी प्रकार की परेशानियों का सामना न करना पडे लेकिन सिविल अस्पताल डबरा में सब कुछ होने के बावजूद भी प्रबंधन की माॅनिटरिंग कमजोर होने के चलते अस्पताल का स्टाॅफ अपने कर्तव्यों से विमुख होता जा रहा है जिस कर्मचारी की जहां ड्यूटी होना चाहिए वह कर्मचारी कहां नौकरी कर रहा है यह किसी को पता हीं नहीं है कितने वार्ड बाॅय है...? कितने कंपाउंडर है...? कितने सफाई कर्मचारी है......? कौन क्या कर रहा है....? ऐसा लगाता है जैसे सिविल अस्पताल में राम राज्य है यहां तक कि मेटरनिटी विभाग में ड्यूटी कर रही नर्साें का प्रसूताओ के प्रति व्यवहार ठीक नहीं है ऐसी शिकायतें प्रतिदिन जग जाहिर होती है।
सैकडों कर्मचारी लेकिन कौन, कहां पता नहीं.....?
जहां तक सिविल अस्पताल की बात करें सिविल अस्पताल में एक सैकडा के लगभग कर्मचारी है लेकिन अस्पताल में कर्मचारी एक सैकडा दिखाई नहीं देते कौन कहां ड्यूटी कर रहा है...? यह पता ही नहीं, जिसके चलते अव्यवस्थाओं का आलम अस्पताल में आए मरीजों को परेशानियों में तब्दील करता है।
सफाई पर उचित ध्यान नहीं.........
सिविल अस्पताल में सफाई कर्मचारी तैनात है लेकिन उसके बावजूद भी वार्डाें की स्थित पर गौर किया जाए तो देखने में आता है कि फिनायल से पौंछा जब कभी लग जाता हो तो कहां नहीं जा सकता, सफाई के प्रति कर्मचारियों का रवैया ठीक नहीं है।
अपने कर्तव्यों से विमुख मेटरनिटी वार्ड की नर्सें.......
मेटरनिटी वार्ड में अंचल से प्रतिदिन दो दर्जन की लगभग डिलवेरी कराने के लिए प्रसूताएं अस्पताल आती है मगर प्रायः देखने में आता है कि अधिकांशतः प्रसूताओं को वहां की नर्सें इतना डरा देती है कि उन्हें मजबूरीवश ग्वालियर भागना पडता है कई बार तो देखने में आया कि नर्साें का व्यवहार प्रसूताओं के प्रति उतना अच्छा नहीं है जितना अच्छा होना चाहिए कई बार तो नर्साें के साथ तू-तू, मैं-मैं अटेण्डरों के बीच देखी जाती है एक नर्स मेटरनिटी वार्ड में ऐसी है जो सारा दिन मोबाइल से ही बात करती रहती है और प्रबंधन का ध्यान तक नहीं है।
50 लाख खर्च आईसीयू फिर भी नहीं.......
पूर्व लोकसभा सांसद ग्वालियर एवं केन्द्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर के द्वारा अपने सांसद फण्ड से 50 लाख रूपया आईसीयू वार्ड के लिए दिया गया था जिसमें से सिर्फ 10-10 लाख रूपये की दो कलर डाॅप्लर मशीने खरीदी जा चुकी है जिनकी वर्तमान में कोई उपयोगिता नहीं है लेकिन 30 लाख कहां खर्च हो गए इस पर प्रबंधन हमेशा हाथ खडे कर देते है आखिरकार यह पैसा कहां खर्च हुआ है इसका लेखा-जोखा तो होना चाहिए।
समयानुसार डाॅक्टर ड्यूटी पर क्यों नहीं.....?
शासन ने ओपीडी का जो समय निश्चित किया है उस ओपीडी में निश्चित समय पर कोई भी डाॅक्टर अस्पताल में नहीं आ पाता कोई 20 मिनिट लेट आता है, तो कोई 40 मिनिट, तो कोई बस से आता है तो कोई अपने पर्सनल साधन से। यानी कि आते-आते जो पहले डाॅक्टर आता है उस पर ओपीडी में मरीजों का अत्यधिक लोड होता है जबकि ओपीडी में निश्चित समय में डाॅक्टर बैठे तो मरीजो को खासी परेशानी का सामना नहीं करना पडेगा।
डाॅक्टरों के लिए आवास फिर भी अप-डाउन क्यों......?
सिविल अस्पताल में शासन के द्वारा डाॅक्टरो के लिए आवास उपलब्ध होने के बावजूद भी अस्पताल के डाॅक्टरो की ऐसी क्या मजबूरी है..? कि वह इन आवासों में नहीं रहते है आखिरकार शासन के द्वारा ये आवास क्यों बनाए गए है...?
नहीं है पार्किंग व्यवस्था........
अस्पताल परिसर में ओपीडी के वक्त इतनी बाइके खडी हो जाती है कि पूरा अव्यवस्थाओं का आलम आम मरीजो को भी भुगतना पडता है जबकि परिसर में काफी जगह पडी है अगर मोटर साइकिल स्टैण्ड भी बन जाए तो अस्पताल को अर्निंग का साधन भी बन सकता है मगर ऐसा क्यों नहीं किया जाता....?
इनका कहना......
अस्पताल में काफी अव्यवस्थाएं है इन अव्यवस्थाओ को वरिष्ठ अधिकारियों को अपने संज्ञान में लेना चाहिए क्योंकि सरकार का लाखों रूपया खर्च होता है सरकारी योजनाओं पर उनका लाभ मरीजो को उतना नहीं मिल पाता जितना कि मिलना चाहिए।
मुकेश घई (राष्ट्रीय अनुसूचित जाति मोर्चा राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य)
अस्पताल में सफाई ठीक नहीं है प्रबंधन को ध्यान देना चाहिए सांसद फण्ड से 50 लाख रूपया आईसीयू वार्ड को बनाने के लिए मिला है पैसा कहां खर्च किया है उसका हिसाब-किताब प्रबंधन के पास होना चाहिए अगर नहीं है तो यह लापरवाही है।
ब्रजमोहन परिहार (वरिष्ठ भाजपा नेता)